ग्वालियर। जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक से संबद्ध 76 कृषि साख सहकारी समितियों पर किए फर्जी ऋण वितरण की जांच के लिए जांच दल बना दिए हैं। 5 विभाग के अधिकारी घोटाले का राज पता करेंगे।
पहले उन आवेदनों की जांच की जाएगी, जिन किसानों ने जन सुनवाई व कंट्रोल रूप में शिकायतें की हैं। जांच दल किसान के नाम दिए गए ऋण के रिकार्ड के आधार पर जांच कर रिपोर्ट पेश करेंगे। नईदुनिया ने पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा किया था और कैसे घोटाला किया है, वह भी बताया है।
वर्ष 2006 से 2013 के बीच सहकारी समितियों पर फर्जी ऋण वितरण कर समिति प्रबंधक, जिला सहकारी बैंक के संचालक मंडल व महाप्रबंधक, प्रबंधकों ने अपनी तिजोरियां भर ली। किसानों को कर्जदार बना दिया। वर्ष 2013 के बाद से बैंक की माली हालत खराब हो गई। बैंक में 7 साल तक भाजपा समर्थित संचालक मंडल रहा। कांग्रेस सरकार ने जय किसान ऋण माफी योजना लागू की है।
इस योजना का लाभ देने के लिए पहले कर्जदार किसानों की सूची पंचायत स्तर पर चस्पा की गई। सूची में नाम देखकर किसानों में हड़कंप मच गया। कर्ज नहीं लिया और कर्जदार देखकर हैरान रह गए। किसानों ने लिखित में जनसुनवाई पर शिकायतें की और कंट्रोल रूम पर भी शिकायतें दर्ज कराईं। इसके अलावा पंचायत स्तर रखे गए गुलाबी फार्म भी भरे।
11 हजार 411 ने अपने ऋण पर आपत्ति दर्ज कर संदिग्ध बताया है। फर्जी ऋण से संबंधित जितनी भी शिकायतें आई हैं,उनकी जांच के लिए कमेटी बना दी है। इस कमेटी में एसडीएम, जनपद पंचायत के सीईओ, कृषि विभाग के एसडीओ, सहकारिता विभाग के निरीक्षक व जिला सहकारी बैंक के प्रबंधक को टीम में शामिल किया गया है।
न जमीन, न सदस्य, लेकिन कर्जदार बनाया गया
- डबरा व भितरवार क्षेत्र की 15 समितियों पर ज्यादा फर्जीवाड़ा किया गया, क्योंकि ये समितियां बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष कौशल शर्मा के प्रभाव क्षेत्र वाली थीं। फर्जीवाड़े के बाद भी इन समितियों को सबसे ज्यादा पैसा दिया गया। चीनौर, उर्वा, मेहगांव, दुबहा, करहिया, घरसोंदी, पिपरौआ, छीमक, चिटौली, सूखा पठा, अकबई, चितावनी, गड़ाजर, पिछोर, इटायल, सिमिरिया, भितरवार, शुक्लहारी पर सबसे ज्यादा फर्जीवाड़ा है।
- यहां जिन लोगों को ऋण दिया गया है, वे न सदस्य थे और न उनकी जमीन उस समिति के कार्यक्षेत्र में थी।
- समिति प्रबंधकों ने अपने-अपने नाम चिन्हित कर रखे थे, बैंक के पैसे में गबन करने के बाद उनके नाम ऋण चढ़ाते थे। चीनौर क्षेत्र की समितियों पर 200 लोग ऐसे सामने आ रहे हैं, जिनके नाम हर समिति पर फर्जी ऋण निकाला गया है।
- मृतकों को भी कर्जदार बनाया गया है, जिनका सालों पहले निधन हो चुका है।
प्रबंधकों तक ही सिमटा सहकारिता विभाग, संचालक मंडल पर चर्चा नहीं
2006 से 2013 के बीच समितियों पर हुए गबन में बैंक का तत्कालीन संचालक मंडल पूरी तरह से शामिल था, क्योंकि उन्हें इसकी पूरी जानकारी थी और शिकायतें भी आई थी, लेकिन गबन करने वालों पर संचालक मंडल ने कोई फैसला नहीं लिया। वर्तमान में जितनी भी जांच सहकारिता विभाग ने की है, उसमें तत्कालीन संचालक मंडल पर गौर नहीं किया। क्योंकि संचालक मंडल की सहमति मिलने के बाद ही समितियों पर पैसा जाता था।
पैसा वसूल करना जरूरी
- अकेली एफआईआर करने से काम नहीं चलेगा। गबन करने वालों से बैंक का पैसा वसूल करना जरूरी है। तभी बैंक फिर से संचालित हो सकेगी। आरोपियों की संपूर्ण संपत्ति को राजसात करना चाहिए। पूर्व में हुए घोटाले के केस अभी कोर्ट में चल रहे हैं, लेकिन घोटाले का पैसा वसूल नहीं हुआ है। इससे घोटालेबाज मजे में है।
पं सतीश शर्मा, सेवा निवृत्त सहायक लेखपाल जिला सहकारी बैंक
जांच टीम बनाई है
किसानों ने फर्जी ऋण वितरण की शिकायतें की हैं, उनकी जांच के लिए दल बनाए हैं। दल में एसडीएम सहित कृषि, सहकारिता विभाग के अधिकारी शामिल हैं।
आनंद बड़ोनिया, उप संचालक कृषि विभाग
निलंबन करेंगे
ऋण वितरण की गड़बड़ी की जांच में सहकारिता विभाग के अधिकारी गंभीरता से कार्य नहीं कर रहे हैं। ऐसे अधिकारियों को सूची बद्ध कर निलंबन की कार्रवाई जाएगी।
भरत यादव, कलेक्टर ग्वालियर
- #debt waiver
- #congress
- #mp congress
- #kamalnath
- #mp government
- #formation of government
- #Madhya Pradesh
- #कमलनाथ
- #किसानों का कर्ज माफ
- #debt waiver copper sheet to farmers
- #किसानों को कर्जमाफी के ताम्रपत्र
