शिव के अंश से जन्में थे ऋषि दुर्वासा। पुराणों में उल्लेखित है कि ब्रह्मा के पुत्र अत्रि ने 100 वर्ष तक ऋष्यमूक पर्वत पर अपनी पत्नी अनुसूया सहित तपस्या की थी।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने उन्हें एक-एक पुत्र प्रदान किया। ब्रह्मा के अंश से विधु, विष्णु के अंश से दत्त तथा शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म हुआ।
दुर्वासा अपने क्रोध के कारण प्रसिद्ध रहे, जिन्होंने जिंदगी भर अपने भक्तों की परीक्षा ली। वैसे तो ऋषि दुर्वासा के क्रोध से जुड़ी अनेक कहानियां हमारे पौराणिक इतिहास में मौजूद हैं। लेकिन एक पौराणिक कहानी ऐसी भी है जिसमें उन्हें ही अपने क्रोध का सामना पड़ा।
यह कहानी है इक्ष्वांकु वंश के राजा अंबरीश की, वह भगवान विष्णु के परम भक्त थे। बेहद न्यायप्रिय राजा की प्रजा खुशहाल और संपन्न थी। अंबरीष से श्रीहरि इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र का नियंत्रण उनके हाथ में सौंप रखा था।
एक समय की बात है राजा अंबरीश ने एकादशी का व्रत रखने का निर्णय लिया। यह व्रत इतना ताकतवर होता है कि इंद्र को भी अपने सिंहासन की चिंता सताने लगी। अंबरीश के व्रत में विघ्न डालने के लिए उन्होंने ऋषि दुर्वासा को अंबरीश के यहां भेजा। ऋषि ने पहले ही अंबरीश को सूचना भिजवा दी।
अंबरीश ने ऋषि दुर्वासा का बहुत देर इंतजार किया, लेकिन वो नहीं आए तब अंबरीश ने देवताओं का ध्यान कर उन्हें आहुति दी और कुछ भाग दुर्वासा के लिए निकाल लिया।
क्रमश:
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